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महंगे ऑइल से बिगड़ेगा इकॉनमी का गणित, जानिए कैसे?

6 January 2018 | 11.27 AM

इंटरनैशलन मार्केट में क्रूड का दाम ढाई साल के हाई पर पहुंच गया है। जुलाई 2015 में बने 11 साल के लो के डबल लेबर पर है। बड़ा इंपोर्टर होने के चलते भारत को सस्ते क्रूड से बड़ा फायदा हुआ था। अब दाम के साथ सरकार की फिक्र बढ़ने लगी है। जानें, क्यों...


इस समय ब्रेंट क्रूड 68.03 डॉलर प्रति बैरल पर मिल रहा है। अप्रैल 2015 से मार्च 2016 के बीच तेल 30 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गया था।


मौजूदा दर पर हर महीने 39,674 करोड़ रुपये ऑइल पर खर्च किया जा रहा है। क्रूड महंगा होने की वजह से यह बोझ लगातार बढ़ रहा है।


प्रोड्यूसर्स प्रॉडक्शन में कटौती का वचन बड़ी ईमानदारी से निभा रहे हैं। खासतौर पर खाड़ी देशों में जियोपॉलिटकल टेंशन बढ़ गई है। शेयरों में रैली से भी क्रूड पर बने बुलिश सेंटीमेंट को मजबूती मिली है। अमेरिका में बर्फीले मौसम के चलते हीटिंग के लिए डिमांड बढ़ी हुई है।


फ्यूल पर खर्च बढ़ने से सरकार को अन्य स्कीमों से खर्च घटना पड़ सकता है। महंगाई बढ़ सकती है और आम आदमी की जेब पर इसका सीधा असर होगा। डॉलर के मुकाबले रुपये में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा। लोगों में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ सकती है, जबकि इस साल 8 राज्यों में चुनाव होने हैं। फॉरेन फंड फ्लो सुस्त होगा और शेयरों में गिरावट आ सकती है।


जियोपॉलिटिकल टेंशन बढ़ने पर क्रूड के दाम में आग लग सकती है। शेख Vs शेल: क्रूड के ऊंचे दाम से शेल फील्ड फिर से प्रॉफिटेबल हो जाएंगे।

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