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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड : निकाहनामे में ट्रिपल तलाक न होने की शर्त होगी

19 May 2017 | 2.20 PM

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह नहीं चाहता है कि ट्रिपल तलाक की प्रथा जारी रहे इसलिए उसने यह तय किया कि नए निकाहनामे में ट्रिपल तलाक न लेने की शर्त होगी। बोर्ड ने कहा कि इस संबंध में देशभर केतमाम काजियों को एडवाजरी भेजने का निर्णय लिया गया है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, ‘ हम नहीं चाहते है कि ट्रिपल तलाक की प्रचलन जारी रहे। इस संबंध में हुई बैठक । बैठक में निर्णय लिया गया कि देश के सभी काजियों को एडवाइजरी भेजा जाएगा जिसमें निकाहनामे में ट्रिपल तलाक नहीं लेने की शर्त होगी।’ पीठ ने पर्सनल लॉ बोर्ड को हलफनामा के जरिए यह बताने के लिए कहा है। साथ ही यह भी बताने केलिए कहा कि काजी को इस संबंध में कब निर्देश दिया जाएगा।

सिब्बल ने कहा कि वह जल्द से जल्द हलफनामा दाखिल करेंगे लेकिन साथ ही यह भी कहा कि हमारा मानना है कि इस तरह की एडवाइजरी का जमीनी स्तर पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा।

ट्रिपल तलाक पर सुनवाई केआखिरी दिन सिब्बल ने संविधान पीठ को कहा कि यह अदालत केअधिकारक्षेत्र में नहीं है कि वह 1400 वर्षों से चली आ रही परंपरा को गैरकानूनी या असंवैधानिक करार दें। सिब्बल ने पीठ से कहा कि यह ‘फिसलन वाली ढलान’ है, लिहाजा अदालत को इस मामले में एहतिहात बरतने की जरूरत है।

इसके साथ ही चीफ जस्टिस जेएस खेहर, न्यायमूर्ति कूरियन जोसफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने छह दिनों तक बहस सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की उस दलील का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि ट्रिपल तलाक को समता, अच्छे विवेक और संवैधानिक नैतिकता के आधार पर परीक्षण करना चाहिए।

सिब्बल ने कहा कि इस मसले पर कानून के अभाव में ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर विधायिका कानून बनाती है तो संवैधानिक नैतिकता केसिद्धांत केआधार पर अदालत उसका परीक्षण कर सकती है नहीं तो हमारा अधिकार संविधान केअनुच्छेद-25(1) केतहत संरक्षित है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार सामाजिक सुधार लाना चाहती है तो वह कानून ला सकती है। हमारा यह कहना कि इसकी एक प्रक्रिया होती है जिसे पूरा किया जाना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि अदालत को यह नहीं निर्धारित करना चाहिए कि संसार में कौन-कौन सी कुप्रथा है। सिब्बल ने कहा कि कई अन्य बुरी परंपरा है लेकिन समाज में अब भी संरक्षण मिल रहा है।

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