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कर्ज ही एक वजह नहीं है किसानो के बढ़ते विरोध की, जाने क्या है सभी कारण ?

16 June 2017 | 4.19 PM

नई दिल्ली
पिछले कुछ दिनों से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान अपनी फसलों के बेहतर मूल्य और कर्ज माफी के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि कृषि उत्पादों पर कम मूल्य और कर्ज का बढ़ता बोझ ही उनकी मुख्य समस्याएं नहीं हैं। दरअसल कृषि के ढांचे में ही कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनका कर्ज माफी जैसे अस्थाई उपायों से समाधान नहीं हो सकता। कृषि क्षेत्र की वर्तमान हालत पर नाबार्ड के पूर्व चेयरमैन प्रकाश बक्शी कहते हैं, 'ऐसा लगता है कि यह अव्यवस्था हाल ही में हुई गड़बड़ियों की वजह से पैदा हुई है, लेकिन इस समस्या की जड़ें काफी गहरी हैं।' जानें, क्या हैं खेती की समस्याएं और क्या हो सकते हैं उनके समाधान....


जोत छोटी होती गई और समस्या बढ़ती रही


पीढ़ी दर पीढ़ी खेती के विभाजित होने से खेतों का आकार घटता जा रहा है। खेतों का आकार छोटा होने से कृषि उत्पादन और फसलों से होने वाली बचत में कमी आ रही है। 1970-71 में 7 करोड़ किसानों के पास 16 करोड़ हेक्टेयर जमीन थी। इन किसानों में से 4.9 करोड़ किसान छोटे और सीमांत किसान थे, जिनके पास 2 हेक्टेयर तक की खेती थी। 2010-11 में किसानों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 13.8 करोड़ तक पहुंच गई, जबकि छोटे और सीमांत किसानों की संख्या भारी उछाल के साथ 17.7 करोड़ हो गई। इन आंकड़ो से खेतों के विभाजन की दर को आसानी से समझा जा सकता है। इस दर के साथ 2040 तक भूस्वामियों की संख्या 18.6 करोड़ हो जाएगी।


छोटे खेत क्यों हैं घाटे का सौदा?

छोटे खेत वाले किसानों के पास खेती के पर्याप्त साधन, सिंचाई की व्यवस्था आदि का अभाव होता है और इस सब के लिए उन्हें बड़े किसानों पर निर्भर रहना पड़ता है। वहीं, बड़े किसानों की संख्या भी समय के साथ घट रही है। ऐसे में छोटे किसानों के लिए खेती के साधन जुटाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा क्रय-विक्रय में छोटे किसानों की मोलभाव क्षमता भी कम होती है। ऐसे में जैसे-जैसे खेतों का आकार छोटा होता जा रहा है, किसानों को होने वाला फायदा भी कम होता जा रहा है। हर 5 साल में कृषि क्षेत्र में 1 करोड़ छोटे किसान जुड़ रहे हैं। अगर यह दर बरकरार रही तो आने वाले समय में कृषि क्षेत्र के हालात बेकाबू हो सकते हैं।


यदि सरकार ऐग्रिकल्चर लैंड लीज पॉलिसी में सुधार करती है और जमीन के मालिकाना हक से जुड़े कानून को बदलती है तो छोटे किसान लंबे समय तक अपनी जमीन को बटाई या फिर लीड पर दे सकेंगे। फिलहाल इस नियम के चलते छोटे किसान जमीन का मालिकाना हक गंवाने के डर से खेती लीज पर नहीं देते। यदि लैंड को लीज पर देना वैध हो जाए तो छोटे किसान अपनी जमीन पर खेती के प्रति आकर्षित होंगे।


किसानों के लिए विकल्पों की तलाश जरूरी

खेती अकेले किसानों और ग्रामीण मजदूरों को रोजगार नहीं दे सकती है। सरकार को खेती से जुड़े लोगों को दूसरे व्यवसायों में अवसर देने के उपाय करने होंगे। ऐसे लोगों में वैकल्पिक स्किल्स पैदा करने और रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे। यही नहीं ऐसे लोगों को अस्थायी रोजगार देने पर भी फोकस करना होगा।

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