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जानिए! शेयर बाजार से ज्यादा रिटर्न कैसे कमाएं?

18 September 2017 | 12.24 PM

'ऑर्डिनरी' और 'एक्स्ट्रा-ऑर्डिनरी' के बीच क्या फर्क होता है या नेतृत्व करने वाले और उसके पीछे चलने वालों को कौन सी बात अलग करती है? उन्हें 'सेकंड लेवल थिंकिंग' अलग करती है। यह ऐसी थ्योरी है, जिसका इस्तेमाल कई चीजों पर किया जा सकता है। शेयर बाजार में निवेश के मामले में भी आप 'सेकंड लेवल थिंकिंग' को अप्लाई कर सकते हैं।


फर्स्ट लेवल थिंकर्स वे होते हैं, जो सिंपल चीजों को समझ पाते हैं, जबकि सेकंड लेवल थिंकर्स पहली नजर में जो चीज सामने आती है, उसे सच मानकर चुप नहीं बैठते हैं। जानेमाने निवेशक हॉवर्ड मार्क्स का कहना है कि शेयर बाजार में दूसरों से बेहतर प्रदर्शन के लिए सेकंड लेवल थिंकिंग की जरूरत पड़ती है।


सेकंड लेवल थिंकिंग में निवेशक का मकसद औसत से बेहतर प्रदर्शन करना होता है। हॉवर्ड मार्क्स ने सुपीरियर इनवेस्टिंग के बारे में कहा है कि इसमें ऐसे स्टॉक्स में निवेश किया जाता है, जिसे दूसरे लोग ठीक नहीं मानते और वह शेयर सस्ता होता है। 20वीं सदी के जाने-माने ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने भी कहा था, 'पारंपरिक सोच और व्यवहार सुरक्षित होता है, लेकिन इससे औसत रिजल्ट ही मिलता है। आपको यह समझने की जरूरत है कि अलग सोच से आपका परफॉर्मेंस किस तरह बेहतर हो सकता है।' फर्स्ट लेवल थिंकर से सेकंड लेवल थिंकर बनने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है।


सेकंड लेवल थिंकिंग की अहमियत


इसके लिए निवेशकों के पास काफी अनुभव होना चाहिए। उसमें सोच-समझकर निवेश के सही फैसले करने की योग्यता भी होनी चाहिए। जैसा कि वॉरेन बफेट के पार्टनर चार्ली मंगेर ने कहा है, 'यह आसान नहीं है। अगर किसी को यह लगता है कि सेकंड लेवल थिंकिंग आसान है तो इसका मतलब यह है कि वह ठीक तरीके से सोच नहीं रहा है।' फर्स्ट लेवल थिंकर्स सिर्फ ऊपरी चीजों को देख पाते हैं और उस पर सिंपल तरीके से रिएक्ट करते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग मार्केट रिएक्शंस के आधार पर शेयर खरीदने या बेचने के फैसले करते हैं। हॉवर्ड मार्क्स ने कई उदाहरण के जरिये यह बात समझाई है। उनके मुताबिक, फर्स्ट लेवल थिंकर को लगता है, 'फलां अच्छी कंपनी है। चलो इसमें निवेश करते हैं।' सेकेंड लेवल थिंकर की सोच यह होती है, 'यह अच्छी कंपनी है, लेकिन यह तो सबको पता है, इसलिए स्टॉक ओवररेटेड है और ओवरप्राइस्ड है। चलो इससे निकल जाते हैं।'


क्या है इसकी प्रासंगिकता?


भारतीय शेयर बाजार रिकॉर्ड लेवल के करीब है और इससे कुछ निवेशकों में घबराहट दिख रही है, जबकि कुछ में काफी जोश दिख रहा है। ऐसी सिचुएशन में सेकंड लेवल थिंकिंग काफी काम आती है। हमने अक्सर देखा है कि अच्छी कंपनियों के शेयर किस तरह से महंगे हो जाते हैं और इस तरह से उनमें निवेश रिस्की हो जाता है। वहीं, बुरी कंपनियों के शेयर की कीमत इतनी कम हो जाती है कि उसमें रिस्क बहुत कम हो जाता है। निवेश से अच्छा रिटर्न वही हासिल कर पाता है, जो ऐसे शेयर खरीदता है, जिनमें मार्केट की दिलचस्पी नहीं होती है, लेकिन वे शेयर अच्छे होते हैं और ऐसी कंपनियों का बिजनेस बदलने वाला होता है। सुपीरियर इनवेस्टमेंट डिसिजन लेना आसान नहीं होता। महान निवेशक भी इसे समझते हैं। आपको लगातार सीखना और अपने में सुधार लाना होता है।

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