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कैंसल किए जाएंगे घटिया दवा कारखानों के लाइसेंस

15 January 2018 | 11.31 AM

नई दिल्ली:  देश का ड्रग रेगुलेटर कई कंपनियों के कारखानों की दोबारा जांच करने की तैयारी में है। इस जांच में देखा जाएगा कि देश में बेची जाने वाली और विदेश में निर्यात की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए कंपनियों ने उचित कदम उठाए हैं या नहीं। इस जांच के लिए केंद्र और राज्य स्तर के ड्रग रेगुलेटर मिलकर काम करेंगे। उम्मीद है कि यह जांच अगले तीन हफ्तों में शुरू हो जाएगी। तय गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) का पालन न करने वाली कंपनियों को दंड भी दिया जा सकता है।


अभी कई बड़ी भारतीय दवा कंपनियां यूएस एफडीए और हेल्थ कनाडा जैसी ग्लोबल रेगुलेटरी एजेंसियों की ओर से तय कंप्लायंस प्रोसिजर्स को लेकर मुश्किलों का सामना कर रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सेंट्रल और स्टेट ड्रग रेगुलेटर्स की ज्वाइंट टीम उन 147 दवा कारखानों की दोबारा जांच करेगी, जिनका निरीक्षण पिछले दो वर्षों में किया गया है। उन्होंने बताया कि इनके अलावा राज्यों के ड्रग रेगुलेटर 37 कारखानों की भी दोबारा जांच करेंगे क्योंकि संयुक्त जांच के पहले चरण में इनमें कुछ मानकों पर खरा नहीं पाया गया था। इन अतिरिक्त कारखानों में अधिकतर बड़ी दवा कंपनियों के हैं।


अधिकारी ने बताया कि दूसरी बार की जांच में अगर इन कारखानों में नियमों का उल्लंघन पाया गया तो स्टेट ड्रग रेगुलेटर्स इनके लाइसेंस सस्पेंड करने या कैंसल करने की कार्रवाई कर सकते हैं। इस लिहाज से मामला पहले चरण की जांच से अलग है। पहली जांच में नियमों के उल्लंघन की बात पता चलने पर कंपनियों को खामियां दूर करने का वक्त दिया गया था।


अधिकारी ने उन कंपनियों के नाम बताने से मना कर दिया, जिनके कारखानों की दोबारा जांच होनी है। अधिकारी ने ईटी को बताया, 'इन कंपनियों ने पहली जांच के बाद अपने कंप्लायंस लेटर जमा कर दिए हैं, लेकिन कंप्लायंस के वेरिफिकेशन के लिए दूसरी संयुक्त जांच की जरूरत है।' अधिकारी ने कहा कि दूसरी संयुक्त जांच के दायरे में छोटी और मझोली कंपनियों के कारखाने हैं।


इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट दीपनाथ रॉय चौधरी ने ईटी से कहा, 'इरादा तो ठीक है, लेकिन सरकार अगर चाहती है कि इंडस्ट्री इन स्टैंडर्ड्स के मुताबिक चले तो उसे कंपनियों को फाइनेंशियल और टेक्निकल सपोर्ट देना चाहिए।' उन्होंने कहा कि छोटी और मझोली दवा कंपनियों को फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर न केवल बड़ी रकम निवेश करनी होगी, बल्कि डब्ल्यूएचओ GMP गाइडलाइंस के पालन के लिए ऑपरेशनल कॉस्ट पर भी ज्यादा खर्च करना होगा।


इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के सेक्रेटरी जनरल डी जी शाह ने कहा, 'मरीजों का हित इसी में है कि भारतीय GMP शर्तों का पालन नहीं करने वाली यूनिट्स को उचित चेतावनी के बाद बंद कर दिया जाए।'


इंडस्ट्री के एक एग्जिक्यूटिव ने कहा, 'अगर मानकों को सख्त कर दिया गया तो कई छोटी कंपनियों को कारोबार समेटना पड़ जाएगा।' देश की शीर्ष रेगुलेटरी संस्था द सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने 2016 में जोखिम आधारित जांच शुरू की थी ताकि बाजार में घटिया दवाओं की आपूर्ति रोकी जा सके।

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