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IPO मार्केट में अक्लमंदी के साथ करें निवेश, जानिए...

13 December 2017 | 1.04 PM

शेयर बाजार में वैल्यूएशन बढ़ने के साथ रिस्क बढ़ता है। प्राइमरी मार्केट में भी ऐसा ही होता है। हालांकि, कुछ निवेशकों को अभी भी लगता है कि प्राइमरी मार्केट, सेंकेडरी मार्केट की तुलना में सुरक्षित है क्योंकि इसमें उन्हें कंपनी से सीधे शेयर मिलते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि प्राइमरी मार्केट भी शेयर बाजार का हिस्सा है। इसलिए उसके साथ भी मार्केट संबंधित जोखिम जुड़े हुए हैं।


ऐसे फायदा उठाती हैं कंपनियां


आईपीओ इशू करनेवाली कंपनियां निवेशकों में कम जागरुकता का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं। इस बारे में जियोजित फाइनैंशल सर्विसेज में फंडामेंटल रिसर्च के हेड विनोद नायर ने कहा, 'आईपीओ मार्केट में बुलबुला बन रहा है। अधिकतर कंपनियां शेयर बाजार में तेजी की वजह से बहुत ऊंचे वैल्युएशन पर इशू ला रही हैं इसलिए निवेशकों को सावधान रहना चाहिए।'


दो तरह की कंपनियां


अभी दो तरह की कंपनियां बाजार में आ रही हैं। एक वर्ग में ऐसी कंपनियां हैं, जिनके फंडामेंटल्स मजबूत हैं। ये कंपनियां हाई प्राइस पर इशू ला रही हैं। दूसरे वर्ग में फंडामेंटली कमजोर कंपनियों के शेयर हाई प्राइस पर ऑफर किए जा रहे हैं। इस बारे में एचडीएफसी सिक्यॉरिटीज के रिसर्च हेड दीपक जसानी ने बताया, 'अभी जो महंगे इशू आ रहे हैं, उन्हें लेकर सावधान रहने की जरूरत है। पहले का एक्सपीरियंस बताता है कि बुल फेज के टॉप पर आईपीओ जिस प्राइस पर आते हैं, वहां तक पहुंचने में उन्हें कुछ साल लग सकते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि वे उस लेवल तक कभी नहीं पहुंच पाते।'


क्या करना चाहिए?

प्राइमरी मार्केट में पैसा लगानेवाले ज्यादातर लोग दोस्तों और रिश्तेदारों से मिले टिप्स के आधार पर निवेश करते हैं। यह अच्छी बात नहीं है। अगर आप किसी कंपनी की ऐनालिसिस खुद नहीं कर सकते तो जाने-माने रिसर्च हाउस की मदद लीजिए। हालांकि, यह काम भी आसान नहीं रह गया है। अधिकतर रिसर्च हाउस करीब-करीब सभी इशू में मीडियम से लॉन्ग टर्म के लिए निवेश करने की सलाह दे रहे हैं। जसानी ने बताया, 'जब शेयर बाजार चढ़ रहा होता है, तब ऐनालिस्ट शायद ही किसी इशू में निवेश करने की सलाह नहीं देते। निवेशकों को ऐसे ऐनालिस्ट की पहचान करना चाहिए जो इस भीड़ का हिस्सा नहीं है। वह उन्हें बता सकता है कि किन इशू से दूर रहना चाहिए।'


ग्रे मार्केट का लालच


ऐसे निवेशक भी हैं जो ग्रे मार्केट प्रीमियम के आधार पर आईपीओ में पैसा लगाने का फैसला करते हैं। लेकिन वे यहां भूल जाते हैं कि ग्रे मार्केट प्रीमियम सेकेंडरी मार्केट के मूड से जुड़ा होता है। ICICI लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस के इशू के साथ ऐसा ही हुआ था। इस आईपीओ पर ग्रे मार्केट प्रीमियम 10-20 पर्सेंट का चल रहा था, लेकिन इसकी लिस्टिंग में दो हफ्ते का समय लगा। इस बीच शेयर बाजार में गिरावट आई और इस वजह से आईपीओ की लिस्टिंग इशू प्राइस से नीचे हुई। इसका उलटा भी हो सकता है। मिसाल के लिए, जब एचडीएफसी लाइफ का इशू खुला हुआ था, तब मार्केट फिसल रहा था। हालांकि, 17 नवंबर 2017 को इसकी लिस्टिंग के दिन मार्केट सेंटीमेंट पॉजिटिव हो गया। इसलिए 290 रुपये के इशू प्राइस वाले शेयर की लिस्टिंग 311 रुपये पर हुई। वहीं, बाजार बंद होते-होते स्टॉक प्राइस 344 रुपये हो गया था। संस्थागत निवेशकों की तरफ से लगातार मांग के चलते इसका शेयर प्राइस 368 रुपये तक चला गया है।


फंड मैनेजरों की ऐनालिटिकल स्किल अच्छी होती है। इसलिए उन पर भी भरोसा किया जा सकता है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ आईपीओ में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी थी जबकि कुछ में ऐसा नहीं था। जियोजीत फाइनैंशल सर्विसेज में फंडामेंटल रिसर्च के हेड विनोद नायर ने बताया, 'अगर म्यूचुअल फंड उसी कीमत पर निवेश कर रहे हैं तो रिटेल इन्वेस्टर्स भी लॉन्ग टर्म के लिए इशू में पैसा लगाने की सोच सकते हैं।'

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