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WhatsApp vs Paytm:पेटीएम को ग्राहक गंवाने का डर या ग्राहक को व्हाट्सऐप का डर?

17 February 2018 | 11.33 AM

केन्द्र सरकार अपने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को सफल करने के लिए किस हद तक जा सकती है? यह सवाल बीते हफ्ते सोशल मीडिया ऐप व्हाट्सऐप पर पेमेंट सुविधा शुरु होने के बाद उठा. मौजूदा समय में देश की सबसे बड़ी यूपीआई आधारित पेमेंट सर्विस कंपनी पेटीएम ने यह सवाल उठाया है.


पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा का मानना है कि केन्द्र सरकार विदेशी कंपनियों को बढ़ाने के लिए देश में कुछ भी कर सकती है. विजय शेखर ने कहा कि इससे पहले व्हाट्सऐप की पेरेंट कंपनी फेसबुक ने फ्री बेसिक के जरिए देश में इंटरनेट सेवाओं पर अपना आधिपत्य बनाने की कोशिश की थी.


शर्मा के मुताबिक अब एक बार फिर व्हाट्सऐप की कोशिश देश के ओपन यूपीआई पेमेंट सेवाओं में एंट्री करने की है. पेटीएम के प्रमुख ने सवाल खड़ा किया है कि क्या केन्द्र सरकार को व्हाट्सऐप को पेमेंट बैंक लाइसेंस देना चाहिए?


गौरतलब है कि व्हाट्सऐप के जरिए पेमेंट बैंक सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता नहीं है. पेटीएम का कहना है कि आधार से पेमेंट सेवा को लिंक कराने से ग्राहक अधिक सुरक्षित रहता है. वहीं, शर्मा ने दलील दी है कि व्हाट्सऐप इस्तेमाल करने पर किसी तरह के लॉग-इन की जरूरत नहीं पड़ने के फीचर के चलते भी इस सोशल मीडिया ऐप्प को पेमेंट बैंक का लाइसेंस देना सुरक्षित नहीं है.


देश में व्हाट्सऐप की पेमेंट सेवा शुरू करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया जा चुका है. इस लॉन्च के दौरान लाखों व्हाट्सऐप यूजर के चैट में पेमेंट का नया फीचर देखने को मिलेगा. इस फीचर के जरिए वह मोबाइल से पेमेंट करने की सुविधा ले सकते हैं. व्हाट्सऐप यूजर को बस अपना बैंक डीटेल व्हाट्सऐप के साथ साझा करना होगा और वह आसानी से अपने किसी कॉन्टैक्ट को पैसे भेज सकेगा.
पेटीएम ने सवाल खड़ा किया है कि क्यों व्हाट्सऐप को लाखों यूजर्स के साथ अपना पायलट प्रोजक्ट लॉन्च करने की मंजूरी दी गई है? जबकि आम तौर पर इस क्षेत्र में किसी कंपनी को पायलट प्रोजेक्ट के लिए 5 से 10 हजार यूजर्स की अनुमति दी जाती है.


लिहाजा, विजय शेखर शर्मा की अपत्तियों से सवाल उठता है. क्या 'मेक इन इंडिया' की नीतियों पर चलते हुए केन्द्र सरकार विदेशी कंपनी को देसी कंपनी के मुकाबले मजबूत करने का काम कर रही है?

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