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रियल्टी कंपनियों की बुनियाद नए अकाउंटिंग रूल्स से हिलेगी, जानिए कैसे?

12 June 2018 | 12.15 PM

नई दिल्ली: इस वित्त वर्ष से नए अकाउंटिंग रूल्स लागू होने से लिस्टेड रियल एस्टेट कंपनियों को पिछले कुछ वर्षों के उन सभी प्रॉजेक्ट्स से हुए प्रॉफिट को बट्टेखाते में डालना पड़ेगा, जो पूरे नहीं हुए हैं। इससे इन कंपनियों की बैलेंस शीट की हालत खराब हो सकती है। वैसे भी पिछले 10 साल में कर्ज लेकर खर्च करने से वित्तीय मुश्किल में फंसीं रियल एस्टेट कंपनियों के अभी उबरने की शुरुआत ही हुई है। कई रियल एस्टेट कंपनियों ने नए अकाउंटिंग रूल्स से राहत के लिए सरकार से फरियाद की है।


इंडस्ट्री के एक बड़े एग्जिक्यूटिव ने बताया कि अगर इन्हें लागू किया गया तो सिर्फ इस वित्त वर्ष में रियल्टी कंपनियों को अपनी नेटवर्थ से 20,000 करोड़ रुपये की रकम राइटऑफ करनी होगी। नया अकाउंटिंग नियम इस साल अप्रैल से लागू हो गया है। अभी ज्यादातर रियल एस्टेट कंपनियां अकाउंटिंग के लिए प्रॉजेक्ट कंप्लीशन मेथड पर चलती हैं, लेकिन इस वित्त वर्ष से उन्हें पर्सेंटेज कंप्लीशन मेथड (पीओसी) पर शिफ्ट होना पड़ेगा।


पहले वाले नियम में होम बायर अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लैट के लिए जो पैसा बिल्डर को देता था, उसे वे अपने टर्नओवर में दिखाते थे और ऐसे प्रॉजेक्ट्स से होने वाली नेट इनकम को मुनाफे के तौर पर दिखाया जाता था।


इस मामले में आईसीआईसीआई सिक्यॉरिटीज के रिसर्च ऐनालिस्ट अधिदेव चट्टोपाध्याय ने एक रिपोर्ट में लिखा है, 'मौजूदा अधूरे प्रॉजेक्ट्स से कंपनियों ने अभी तक जितना भी प्रॉफिट बुक किया है, नए रूल के मुताबिक उन्हें उसे राइटऑफ करना होगा।' रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पहली तिमाही से शुरू होगा और इससे कंपनियों की नेटवर्थ में कमी आएगी, जिससे कुछ समय के लिए उनके डेट इक्विटी रेशियो में बढ़ोतरी हो सकती है।


नए रूल के मुताबिक, अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट के लिए होम बायर की पेमेंट को कर्ज माना जाएगा। इसलिए उसे आमदनी और उससे होने वाले मुनाफे के रूप में नहीं दिखाया जा सकता।


नैशनल रियल एस्टेट डिवेलपमेंट काउंसिल (नारडेको) ने नए रूल्स पर कंपनी मामलों के मंत्रालय से मोहलत मांगी है। उसने मंत्रालय को भेजे ज्ञापन में कहा है, 'इसका कंपनियों की आमदनी पर बहुत बुरा असर होगा। इससे उनकी बैलेंस शीट प्रभावित होगी।'
वहीं, ध्रुव एडवाइजर्स के पार्टनर सौमिल शाह ने बताया कि नए नियम से सिर्फ आमदनी दिखाने के तरीके पर ही असर नहीं पड़ेगा बल्कि उसका कंपनी के नेट प्रॉफिट और नेटवर्थ पर भी बुरा असर होगा। एटीएस इंफ्रास्ट्रक्चर के चेयरमैन और एमडी गीतांबर आनंद ने कहा कि सरकार को मार्च 2018 तक मौजूदा प्रॉजेक्ट्स के लिए ग्रैंडफादरिंग की सुविधा देनी चाहिए, जिससे इंडस्ट्री को नए रूल अपनाने का समय मिल सके।


एक्सपर्ट्स का कहना है कि देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को अपनी नेटवर्थ का बड़ा हिस्सा राइटऑफ करना पड़ सकता है। चट्टोपाध्याय ने बताया, 'वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में डीएलएफ की नेटवर्थ पर चोट पड़ेगी।' इस बारे में डीएलएफ ने कुछ भी कहने से मना कर दिया।

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