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GST के सालाना रिटर्न में बदलाव की मांग, जानिए इसके पीछे का कारण?

27 November 2018 | 12.20 PM

नई दिल्ली: जीएसटी का पहला सालाना रिटर्न भरने की तैयारी कर रहे कारोबारियों और टैक्स प्रफेशनल्स ने आशंका जताई है कि मौजूदा फॉर्मैट में अगर बदलाव नहीं किया गया तो पूरे साल के रेकॉर्ड दोबारा बनाने पड़ सकते हैं। सालाना रिटर्न के तहत कई ऐसी जानकारियां मांगी गई हैं, जिनकी अबतक कभी जरूरत नहीं पड़ी और न ही किसी मंथली रिटर्न में ऐसा प्रावधान था। सालाना रिटर्न भरने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर है, लेकिन अभी तक कॉमन पोर्टल पर इसकी यूटिलिटी ऑनलाइन नहीं हुई है। हालांकि, जीएसटीएन ने इसका टैब इनेबल कर दिया है और उम्मीद जताई है कि जल्द ही फाइलिंग की सुविधा भी शुरू कर दी जाएगी।

इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में सीबीआईसी के जीएसटी पवेलियन में एनुअल रिटर्न को लेकर बड़े पैमाने पर क्वेरीज आ रही हैं। ज्यादातर डीलर्स इस बात को लेकर परेशान हैं कि सालाना रिटर्न के फॉर्मैट में कई टेबल उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। मसलन, सालाना रिटर्न के टेबल-18 में एचएसएन वाइज इनवर्ड सप्लाई दर्शाने के साथ ही क्वांटिटी, वैल्यू, टैक्स रेट, सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी और सेस की डीटेल्स देनी हैं। टैक्सपेयर्स का कहना है कि अब तक न तो GSTR-3B और न ही किसी अन्य फॉर्म में ऐसा कोई टेबल भरा गया है। इसी तरह टेबल-6 के तहत इनवार्ड सप्लाई को चार भागों - नॉर्मल सप्लाई, अनरजिस्टर्ड पर्सन रिवर्स चार्ज, रजिस्टर्ड पर्सन रिवर्स चार्ज और इम्पोर्ट- में बांटा गया है। फिर इन सभी को इनपुट, इनपुट सर्विसेज और कैपिटल गुड्स के तौर पर तीन-तीन सब कैटेगरीज में बांटा गया है।

जीएसटी कंसल्टेंट राकेश गुप्ता ने बताया कि ऐनुअल रिटर्न का सभी महीनों के कुल रिटर्न्स के आंकड़ों के साथ मैचिंग जरूरी है, लेकिन इन अतिरिक्त प्रावधानों के चलते बड़ी समस्याएं सामने आ सकती हैं। अगर इनका पालन किया जाए तो 2017-18 के रेकॉर्ड दोबारा बनाने पड़ेंगे, जो संभव नहीं लगता। इसके लिए समय नहीं है और लागत का बोझ भी बढ़ सकता है। अगर इन्हें हटाया नहीं गया तो सालाना रिटर्न को भी जीएसटीआर-2 की तरह निलंबित करने की नौबत आ सकती है।

जीएसटीएन अधिकारियों ने बताया कि कॉमन पोर्टल पर ऐनुअल रिटर्न का टैब लॉन्च कर दिया गया है और अगले कुछ दिनों में फाइलिंग की सुविधा भी शुरू हो जाएगी। हालांकि फॉर्मैट बदलने या टालने के बारे में फैसला जीएसटी काउंसिल या मंत्रालय के स्तर पर ही फैसला हो सकता है।

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