9 July 2019 | 2.21 PM
नई दिल्ली: शुक्रवार को बजट पेश होने के बाद से ही घरेलू शेयर बाजार में हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बजट में ऐसे कौन से प्रस्ताव हैं जिनसे निवेशकों में भगदड़ मच गई है? दरअसल, बजट में कई प्रस्ताव हैं जिन्होंने निवेशकों को मायूस किया है, लेकिन निवेशक अपने लिए सबसे बड़ा झटका लिस्टेड कंपनियों में पब्लिक होल्डिंग की न्यूनतम सीमा मौजूदा 25% से बढ़ाकर 35% अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव को मान रहे हैं।
क्यों चिंतित है शेयर बाजार?
देश के स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड 4,700 कंपनियों की एक चौथाई में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से ज्यादा है। बजट प्रस्ताव के मुताबिक, अब प्रमोटरों को 3.9 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचने होंगे। हालांकि, मार्केट रेग्युलेटर सेबी अब भी बजट प्रस्ताव का अध्ययन कर रहा है, लेकिन निवेशकों को यह चिंता सता रही है कि अगर प्रमोटरों को थोड़े वक्त में शेयर बेचने पड़े तो बाजार में शेयरों की बाढ़ आ जाएगी।
सेबी ने आखिरी बार जून 2010 में जब लिस्टेड कंपनियों में पब्लिक होल्डिंग लिमिट बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया था, तब उसने कंपनियों को नए नियम के मुताबिक बदलाव करने के लिए तीन वर्ष का वक्त दिया था। यानी, प्रमोटरों को अपने अतिरिक्त शेयर बेचने के लिए तीन वर्ष का वक्त मिल गया था। बहरहाल, बाजार को यह भी आशंका है कि लिस्टेड मल्टिनैशनल कंपनियां जो लोकल फंडिंग के आसरे नहीं रहतीं और कुछ आईटी कंपिनयां, जिनमें प्रमोटरों की शेयर होल्डिंग ज्यादा हैं, खुद को मार्केट से डीलिस्ट कर सकती हैं।
बाजार में हाहाकार
ऐसे ही डर से निवेशकों में भगदड़ मची हुई है। नतीजतन, शुक्रवार की गिरावट के बाद नए सत्र की शुरुआत में सोमवार को सेंसेक्स 793 अंक (2%) टूटकर 38,721 अंक पर बंद हुआ। शेयर बाजार में एक दिन की इतनी बड़ी गिरावट चार साल पहले आई थी। साथ ही, बजट के बाद बाजार का ऐसा प्रदर्शन एक दशक में दूसरी बार देखने को मिल रहा है। सेंसेक्स में सोमवार की गिरावट से निवेशकों के 3.2 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। वहीं, निफ्टी भी 253 अंक (2.14%) अंक टूटकर 11,559 पर बंद हुआ। बड़ी बात यह है कि मंगलवार को भी दोनों प्रमुख सूचकांकों में गिरावट का सिलसिला कायम है।
भविष्य के लिए फायदेमंद
बजट प्रस्ताव से मार्केट्स को अभी कुछ वक्त के लिए भले ही थोड़ी पीड़ा हो रही है, लेकिन भविष्य में यह उसके साथ-साथ खुदरा निवेशकों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। इसका कारण यह है कि नए नियम से प्रमोटरों को कब्जे से कुछ शेयर बाजार में आएंगे तो निवेशकों से ज्यादा धन मिलेगा। कंपनियों में खुदरा और सांस्थानिक निवेशकों का बहुपक्षीय मालिकाना हक कॉर्पोरेट गवर्नेंस के लिहाज से भी अच्छा है। इतना ही नहीं, बजट प्रस्ताव के लागू हो जाने से कुछ वैश्विक सूचकांकों पर भारत का प्रभाव बढ़ेगा क्योंकि ग्लोबल इंडेक्स प्रवाइडर्स त्वरित खरीदारी के लिए उपलब्ध शेयरों के अनुपात पर ध्यान देते हैं। ऐसा होने पर उन विदेशी संस्थागत निवेशकों से लाखों डॉलर मिल सकेंगे जो ग्लोबल इंडेक्स आधार पर ही निवेश करते हैं।
दरअसल, कंपिनयों में खुदरा निवेशकों की कम भागीदारी से भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक कुछ विदेशी फंडों को भी मौका नहीं मिल पाता है। खुदरा निवेशकों की कम हिस्सेदारी से शेयरों की कीमतों में भी बड़ा उतार-चढ़ाव होता है क्योंकि बड़े निवेशक एक साथ बड़ी संख्या में शेयर खरीदते या बेचते हैं।