17 May 2017 | 12.32 PM
नई दिल्ली अपने 'करीबी दोस्त' रूस को चेतावनी देते हुए भारत ने कहा है कि अगर उसे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता नहीं मिल पाती है तो वह परमाणु ऊर्जा विकास के अपने कार्यक्रम में विदेशी पार्टनर्स से सहयोग करना बंद कर देगा। भारत ने साफ कह दिया है कि ऐसी स्थिति में वह रूस के साथ कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना की 5वीं और 6वीं रिऐक्टर यूनिट्स को विकसित करने से जुड़े MoU को ठंडे बस्ते में डाल सकता है।
दरअसल, भारत को महसूस हो रहा है कि चीन के पींगे बढ़ा रहा रूस भारत को एनएसजी सदस्यता दिलवाने के लिए अपनी 'क्षमताओं' का पूरा इस्तेमाल नहीं कर रहा है। ऐसे में अब भारत ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया है। वैश्विक मुद्दों पर चीन के साथ खड़े नजर आने वाले रूस से भारत यह उम्मीद करता रहा है कि वह भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए चीन पर दवाब डालेगा। अब तो रूस को भी यह महसूस होने लगा है कि भारत कुडनकुलम एमओयू को लेकर जानबूझकर देरी कर रहा है ताकि वह एनएसजी सदस्यता के लिए रूस पर दबाव डाल सके।
एमओयू साइन करने को लेकर भारत के 'टालमटोल' से फिक्रमंद रूस के उपप्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में यह मुद्दा उठाया था। एक टॉप ऑफिशल सूत्र ने यह बात कन्फर्म की है। हालांकि भारत की ओर से इस मुलाकात में एमओयू साइन करने को लेकर कोई भरोसा नहीं दिलाया गया। यह मीटिंग दरअसल अगले महीने होने वाली रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात की तैयारियों के मद्देनजर की गई थी। पुतिन-मोदी मुलाकात में अब बस दो हफ्ते बाकी रह गए हैं।
ऐसे में रूस को चिंता सता रही है कि अगर एमओयू साइन नहीं हो पाता है तो इस वार्ता का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत ने इस बार रूस को बहुत स्पष्ट संदेश दिया है। भारत ने साफ कह दिया है कि अगर उसे अगले एक-दो सालों में एनएसजी सदस्यता नहीं मिलती है तो उसके पास स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा।
हालांकि यह साफ नहीं है कि भारत ने इसी तरह की 'चेतावनी' अमेरिका और फ्रांस को भी दी है या नहीं क्योंकि ये दोनों देश भी परमाणु ऊर्जा में भारत के बड़े सहयोगी हैं। लेकिन यह साफ है कि भारत रूस के एक ऐसी बड़ी शक्ति के तौर पर देख रहा है जो अपने प्रभाव से चीन को भारत की एनएसजी सदस्यता में रोड़ा न अटकाने के लिए राजी कर सकता है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को पता चला है कि पिछले 6 महीने से रूस भारत को एमओयू साइन करने के लिए मनाने की कोशिशों में जुटा है, पर उसे कामयाबी नहीं मिल सकी है।
यह एमओयू पिछले साल गोवा में ब्रिक्स समिट में ही साइन होना था। बाद में कहा गया कि इसे 2016 के अंत तक साइन कर लिया जाएगा, लेकिन 2017 भी लगभग आधा बीत चुका है और भारत अपने रुख पर अड़ा हुआ है। ऐसा नहीं है कि रूस से अपनी तरफ से भारत को एनएसजी सदस्यता दिलवाने के प्रयास बिल्कुल नहीं किए, पर भारत को लगता है कि रूस ने चीन को राजी करने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं की हैं। ताजा अंतरराष्ट्रीय हालात में चीन रूस को काफी अहमियत दे रहा है।
ऐसे में रूस चीन को मना सकता है। वैसे रूस को यह भी लगता है कि भारत ने दलाई लामा को अरुणाचल दौरे पर बुलाकर मामले को और जटिल बना दिया है। दलाई लामा पर भारत के रवैये से 'चिढ़ा' चीन अब अपना रुख और कड़ा कर लेगा। बीते सालों में रूस का झुकाव चीन की ओर पहले के मुकाबले काफी बढ़ा है। पिछले सप्ताह चीन के महत्वाकांक्षी OBOR प्रॉजेक्ट की समिट में शामिल होने के लिए पुतिन खुद पेइचिंग गए थे। भारत के अन्य पड़ोसियों की तरह रूस भी यह मानता है कि OBOR का उस विवादित CPEC से कोई सीधा संबंध नहीं है जो भारत के लिए संप्रभुता से जुड़ा मसला है। पिछले साल पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास कर के भी रूस ने भारत को नाराज कर दिया था।