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आयुष्मान भारत: जानें कब से और कैसे ले पाएंगे राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का लाभ

3 February 2018 | 3.34 PM

नई दिल्ली: सरकार ने बजट में 'आयुष्मान भारत' नाम से बड़ी फ्लैगशिप योजना को लॉन्च करने का ऐलान किया है। इसे परवान चढ़ाने के लिए नैशनल हेल्थ प्रॉटेक्शन स्कीम की घोषणा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की। दूसरे दिन शुक्रवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं के साथ ओपन हाउस मीटिंग में एक सवाल के जवाब में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी।


कैसे लागू होगी योजना?


वित्त मंत्री ने कहा कि नैशनल हेल्थ प्रॉटेक्शन स्कीम जिसे मोदी केयर भी कहा जा रहा है, ट्रस्ट मॉडल या इंश्योरेंस मॉडल पर काम करेगा। उन्होंने रीईंबर्स मॉडल की संभावना को यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें बहुत गड़बड़ियां होती हैं। यानी, योजना का लाभ उठानेवाले गरीब मरीजों का इंश्योरेंस किया जाएगा और उनका कैशलेस इलाज किया जाएगा। पहले खुद के खर्चे से इलाज करवाकर सरकार से पांच लाख रुपये तक की रकम वापस पाने का झंझट नहीं होगा।


कब से लागू होगी योजना?


ओपन हाउस में जेटली ने कहा कि नई योजना नए वित्त वर्ष के आगाज यानी 1 अप्रैल 2018 से लागू होगी। यानी, गरीब परिवारों के लोग 1 अप्रैल से 5 लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में करवा सकेंगे।


कहां होगा मुफ्त इलाज?


वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि योजना के तहत गरीब परिवार न केवल सरकारी बल्कि प्राइवेट अस्पतालों में भी इलाज करवा सकेगा। उन्होंने कहा कि चुनिंदा अस्पतालों में लोग कैशलेस इलाज करवा कर इस योजना का लाभ उठा सकेंगे।


बाकी परिवारों का क्या?


वित्त मंत्री जेटली ने बजट भाषण में स्पष्ट किया कि बाद में इस योजना का विस्तार कर देश की बाकी बची आबादी को भी इसके दायरे में लाया जा सकता है। सरकार ने इसके लिए 2,000 करोड़ रुपये की रकम आवंटित की है। इसने गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए 2008 में पेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा की जगह ली है जिसमें 30,000 रुपये का सालाना बीमा कवर दिया गया था।


योजना को पर्याप्त फंड मिला?


पूर्व केंद्रीय मंत्री के पूर्व सलाहकार डॉ. सुनील नंदराज ने 10 करोड़ परिवारों के हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम के लिहाज से 2,000 करोड़ रुपये का आवंटन को पर्याप्त बताया। हालांकि, जन स्वास्थ्य अभियान के नैशनल कन्वीनर अभय शुक्ला का कहना है कि अगर इस योजना का मकसद 50 करोड़ लोगों को लाभ देना है तो प्रति व्यक्ति प्रीमियम 40 रुपये पड़ेगा।


नीति आयोग की परिकल्पना


जेटली ने बताया कि नीति आयोग ने इस योजना की परिकल्पना की है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जीवनभर काम करनेवालों ने उनके और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने प्रजेंटेशन दिया था। जेटली ने कहा, 'उन्होंने यूनिवर्सल हेल्थकेयर स्कीम का प्रजेंटेशन दिया था। चूंकि इसकी लागत बहुत ज्यादा पड़ रही थी। इसलिए हमने सभी 25 करोड़ की जगह 10 करोड़ परिवारों से शुरुआत की ताकि योजना प्रभावी तौर पर लागू हो सके।'


वादा निभाने में लगे पौने चार साल


बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सभी को हेल्थ कवर देने का वादा किया था, लेकिन करीब पौने चार साल बाद उसने इसे पूरा करने के लिए कदम उठाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावी साल करीब होने के कारण सरकार इस योजना के तहत गरीबों के वोटों पर फोकस कर रही है। इस योजना को विशेषज्ञ खासा अहम बता रहे हैं, लेकिन इस पर अमल कैसे होगा, इसे लेकर शंकित भी हैं।


'आयुष्मान भारत' के तहत दो स्कीमें


1. नैशनल हेल्थ प्रॉटेक्शन स्कीम के तहत देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को सालाना 5 लाख रुपये तक का हेल्थ इंश्योरेंस कवर मुहैया कराना। अमेरिका में ओबामा केयर की तर्ज पर वित्त मंत्री जेटली ने नैशनल हेल्थ प्रॉटेक्शन स्कीम का ऐलान करते हुए इसे दुनिया का सबसे बड़ा हेल्थ केयर प्रोग्राम करार दिया। जेटली ने कहा कि इससे कम-से-कम 50 करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा। स्कीम पर अमल के लिए पर्याप्त रकम मुहैया कराई जाएगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत गरीब परिवारों को महज 30 हजार रुपये सालाना की कवरेज हासिल है।


2. हेल्थ और वेलनेस सेंटर देशभर में डेढ़ लाख से ज्यादा हेल्थ और वेलनेस सेंटर खोलना, जो जरूरी दवाएं और जांच सेवाएं फ्री में मुहैया कराएंगे। इन सेंटरों में गैर-संक्रामक बीमारियों और जच्चा-बच्चा की देखभाल भी होगी। इतना ही नहीं, इन सेंटरों में इलाज के साथ-साथ जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों, मसलन हाई ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज और टेंशन पर नियंत्रण के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। सरकार ने इस मद में 1200 करोड़ रुपये का इंतजाम किया है। सरकार इन केंद्रों को चलाने के लिए कॉर्पोरेट का भी सहयोग चाहती है।


नए मेडिकल कॉलेज और अस्पताल

देश में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए 24 जिला अस्पतालों को अपग्रेड कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोले जाएंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि हर तीन संसदीय क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे। अभी देश में प्राइवेट और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से हर साल 67 हजार एमबीबीएस और 31 हजार पोस्ट ग्रैजुएट (पीजी) डॉक्टर निकल रहे हैं। एम्स के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में इलाज के लिए डॉक्टरों की यह तादाद बहुत कम है।


टीबी के खिलाफ मुहिम


जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार ने टीबी के रोगियों को हर महीने 500 रुपये देने का इंतजाम किया है, जिसके लिए 600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। गौरतलब है कि सरकार ने 2025 तक देश से टीबी के खात्मे का लक्ष्य रखा है और इसके लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां चीन के बाद टीबी के सबसे ज्यादा मरीज हैं। यहां हर साल टीबी के करीब 28 लाख नए केस सामने आते हैं और करीब 5 लाख पेशंट्स की मौत हो जाती है।


कहीं बढ़ाया, कहीं घटाया


बजट में एचआईवी-एड्स पर काबू पाने और इसके इलाज के लिए 2100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। पिछली बार यह राशि 2163 करोड़ रुपये थी। इस राशि में कमी किए जाने से विशेषज्ञ नाखुश हैं। इसी तरह परिवार कल्याण की योजनाओं के फंड में भी कमी की गई है।


सरकार ने इस बार के बजट में सेहत के लिए कुल 52,800 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया है। पिछली बार यह राशि 48,300 करोड़ रुपये थी।


स्वास्थ्य योजनाएं


1. मिशन इंद्रधनुष के तहत 15 दिसंबर 2017 तक 528 जिलों के 2.55 करोड़ बच्चों को विभिन्न बीमारियों के बचाव के टीके लगाए गए। इनमें 67 लाख बच्चों को सभी प्रकार के टीके लगा दिए गए।


2. प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना में लोगों को सस्ते दामों में क्वॉलिटी मेडिसिन मुहैया कराई जाती है। दिसंबर 2017 तक सभी राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 3,013 जन औषधि केंद्र चलाए जा रहे हैं।


3. स्वास्थ्य सेवाओं पर अपनी जेब से खर्च करने के मामले में मिडल इनकम वाले 50 देशों में भारत का स्थान छठा है। देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी जोर देना जरूरी है।

क्वॉलिटी हेल्थ सर्विसेज की कमी के कारण 56 फीसदी शहरी और 49 फीसदी ग्रामीण भारत निजी अस्पतालों में भारी-भरकम राशि देकर इलाजा करता है।


क्या कहते हैं एक्सपर्ट?


पॉप्युलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एग्जिक्युटिव डायरेक्टर पूनम मुटरेजा कहती हैं कि इससे जनसंख्या पर लगाम लगाने और परिवार कल्याण की अन्य योजनाएं चलाने में दिक्कत आएगी। बजट में दवाओं की क्वॉलिटी पर नजर रखने के लिए इस बार कोई आवंटन नहीं किया गया है। इस बार अंगदान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बड़ी पहल की है। पिछली बार जहां इस मद में 9 करोड़ रुपये दिए गए, वहीं इस बार इसके लिए 90 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। केंद्र सरकार स्वास्थ्य स्कीम (सीजीएचएस) के सदस्यों के इलाज के लिए पिछली बार 1654 करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया था। इस बार इस राशि को कम करके 1558.86 करोड़ कर दिया गया है। इसी तरह कई और मदों में भी बजट में कमी या बढ़ोतरी की गई है। अगर बीजेपी इसे भुनाने में कामयाब रही तो अगले साल होने वाले आम चुनाव में काफी लंबी माइलेज हासिल कर सकती है।


कहां कितना खर्च?


पिछले साल के मुकाबले 12 प्रतिशत वृद्धि के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय का पूरा बजट 56,226 करोड़ रुपये का हो गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में स्वास्थ्य पर खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक लाने की बात कही थी, लेकिन यह लक्ष्य अभी दूर दिख रहा है क्योंकि अब तक जीडीपी का 1.2 प्रतिशत ही हेल्थ सेक्टर को मिला है।

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