16 June 2018 | 12.16 PM
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली मेडिकल डिवाइसेज के दामों में कमी की सौगात आम जनता को दे सकती है। सरकार इन डिवाइसेज के ट्रेड मार्जिन को 30 पर्सेंट तक सीमित करने की तैयारी कर रही है। इससे डिस्ट्रिब्यूटर्स, होलसेलर्स, रिटेलर्स और अस्पतालों की ओर से मरीजों से अधिक वसूली किए जाने पर लगाम लग सकती है। सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने यह सुझाव दिया है ताकि मेडिकल डिवाइसेज और सर्विसेज को अफोर्डेबल किया जा सकेगा। आयोग ने सुझाव दिया है कि इन डिवाइसेज के ट्रेड मार्जिन को तार्किक स्तर पर लाने को लेकर विचार करना चाहिए। इसी के तहत पहले पॉइंट ऑफ सेल पर इन डिवाइसेज को 30 फीसदी मार्जिन तक लाने का सुझाव है।
हाल ही में पीएमओ के साथ हुई मीटिंग में इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई। नीति आयोग ने इस मसले को लेकर मेडिकल डिवाइसेज मैन्युफैक्चरर्स और पब्लिक हेल्थ ग्रुप्स के अलावा सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करनी शुरू कर दी है। नीति आयोग ने अफोर्डेबल मेडिसिन्स और हेल्थ प्रॉडक्ट्स की स्टैंडिंग कमिटी से कहा है कि उसे एक ऐसी मेडिकल डिवाइसेज की लिस्ट तैयार करनी चाहिए, जो जिससे मार्जिन को सीमित किया जा सके और अधिक मात्रा में उत्पादन हो सके।
फिलहाल भारत की ओर से 75 फीसदी मेडिकल डिवाइसेज का आयात होता है। यही नहीं इस आयात में से 80 फीसदी डिवाइसेज वे होती हैं, जिनका जटिल इलाज के लिए इस्तेमाल होता है और इनकी कीमत खासी अधिक है। फिलहाल देश में मेडिकल डिवाइसेज की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। कार्डिएक स्टेंट, ड्रग इलुटिंग स्टेंट, कॉन्डम्स और इंट्रा यूटेरिन डिवाइसेज की कीमतें ही पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में हैं। सरकार ने इन्हें जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल कर रखा है।
इनके अलावा हाल ही में घुटनों के इलाज के लिए जरूरी डिवाइसेज को भी प्राइस कंट्रोल की पॉलिसी के तहत लाया गया है। इनके अलावा बाकी डिवाइसेज पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। पीएमओ के साथ हुई मीटिंग में साझा किए गए ऐक्शन प्लान के मुताबिक, 'यह सुझाव दिया कि दवाइयों, इलाज और जरूरी डिवाइसेज को कीमत नियंत्रण की नीति के तहत लाया जाना चाहिए। इससे सभी मेडिकल डिवाइसेज की कीमतें और अन्य हेल्थ प्रॉडक्ट्स के प्राइस नियंत्रण में रह सकेंगे।'