27 December 2018 | 1.17 PM
नई दिल्ली: अगर आपने ऐसी सेवाएं ली हैं, जिनमें से कुछ पर गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) सिस्टम में टैक्स बनता हो और कुछ पर नहीं तो इनके लिए जल्द ही आपको अलग-अलग बिल मिलने लगेंगे। जीएसटी काउंसिल ने हेल्थकेयर के अलावा उन सभी वर्गों के लिए यह सुविधा बढ़ाने का फैसला किया है, जिन्हें टैक्स से छूट दी गई है। काउंसिल ने हेल्थकेयर के लिए इस सिस्टम पर विचार किया था।
काउंसिल में हुई चर्चा से वाकिफ एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'काउंसिल का मानना है कि यह सुविधा उन सभी वर्गों के लिए दी जानी चाहिए, जिन्हें टैक्स छूट हासिल है।' कहा जा रहा है कि इससे ग्राहकों के लिए बिलिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और सरकार को अपनी आमदनी की रक्षा करने में भी मदद मिलेगी। सरकारी अधिकारी ने बताया, 'नॉन-जीएसटी और जीएसटी पेड कंपोनेंट में बिल को बांटने से ग्राहकों के लिए पारदर्शिता बढ़ेगी।'
जीएसटी काउंसिल ने अस्पतालों के लिए ऐसे प्रस्ताव पर विचार किया था। हेल्थकेयर सर्विसेज में कॉस्मेटिक सर्जरी और हेयर ट्रांसप्लांट, दवाओं और कन्ज्यूमेबल्स पर जीएसटी देना होता है। इनमें से कुछ सेवाएं तो मैक्सिमम रिटेल प्राइस सिस्टम के तहत भी हैं। ऐसी खबरें भी आई थीं कि अस्पतालों को जिन चीजों पर डिस्काउंट मिला था, उन पर भी उन्होंने ग्राहकों से एमआरपी चार्ज किया। बंडल्ड बिल में ग्राहकों को यह पता नहीं चलता कि किस चीज पर उनसे जीएसटी लिया गया है और उसके नॉन-जीएसटी कंपोनेंट क्या हैं। टैक्स अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के मामलों में ग्राहकों से जो टैक्स लिया जाता है, वह अक्सर सरकार तक नहीं पहुंचता।
पिछले शनिवार को जीएसटी काउंसिल ने दवाओं, कन्ज्यूमेबल्स और हॉस्पिटलाइजेशन चार्जेज को बांटने के सुझाव पर विचार किया था। इसका मकसद यह था कि ग्राहकों से जो टैक्स वसूला जा रहा है, वह सरकार को मिले। काउंसिल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। वह चाहती है कि इसमें उन सेवाओं को भी शामिल किया जाए, जहां बंडल्स इनवॉइस का सिस्टम चल रहा है। मिसाल के लिए एजुकेशन सर्विसेज को भी इसके दायरे में लाया जा सकता है।
टैक्स मामलों के जानकारों का कहना है कि इस पहल से मुकदमेबाजी घटाने में मदद मिलेगी। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर एम एस मणि ने बताया, 'कंपोजिट सप्लाई और मिक्स्ड सप्लाई में कुछ कॉमन प्रिंसिपल्स हैं, जबकि टैक्स ट्रीटमेंट बिल्कुल अलग है। इसलिए कंपोजिट सप्लाई को जहां संभव है, वहां अलग करने से भविष्य में मुकदमेबाजी से बचने में मदद मिलेगी।' जानकारों का यह भी कहना है कि इसके लिए कंपोजिट सप्लाई की परिभाषा में बदलाव करना होगा। पीडब्ल्यूसी में इनडायरेक्ट टैक्स पार्टनर अनीता रस्तोगी ने बताया, 'कंसॉलिडेटेड बिल या अलग-अलग बिल जेनरेट करना दो पार्टियों के बीच की समझ पर निर्भर करता है। किसी इंडस्ट्री में जो ट्रेंड चल रहा है, उस हिसाब से भी बिल बनाया जाता है। अगर सरकार अलग-अलग बिल को अनिवार्य बनाती है तो कंपोजिट सप्लाइ की परिभाषा पर भी गौर करना होगा। अभी बंडल्ड सप्लाइ कॉनसेप्ट इसके दायरे में आता है।'