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इंश्योरेंस कंपनियां शिकायत अनसुनी करें तो ऐसी स्थिति में क्या करें?

23 March 2019 | 12.15 PM

नई दिल्ली: बीमा कंपनियां जब बीमाधारकों की शिकायतों पर कार्रवाई करने में असफल रहती हैं तो इस क्षेत्र का लोकपाल (इंश्योरेंस ऑम्बड्समैन) उनकी मदद करने के लिए आगे आता है। चूंकि बीमा लोकपाल का आदेश बीमा कंपनियों के लिए बाध्यकारी है, इसलिए कंपनियों के पास इससे बचने की कोई गुंजाइश नहीं बच जाती है। हालांकि, सवाल यह है कि अगर कंपनी लोकपाल का आदेश मान भी ले, लेकिन उसे लागू करने में देरी करे या आदेश के मुताबिक ऐक्शन ले ही नहीं तो क्या किया जाए?

भरोसे का कत्ल

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई) ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी कर बताया कि पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर के बीच कई इंश्योरेंस कंपनियों ने नियमानुसार उसके आदेश को 30 दिनों के अंदर लागू नहीं किया और न ही 60 दिनों के अंदर आदेश के खिलाफ अपील की। रेग्युलेटर ने आदेश लागू करने में देरी की वजह नहीं बताने पर भी कंपनियों की खिंचाई की। इतना ही नहीं, IRDAI ने ऐसी बीमा कंपनियों को चेतावनी भी दी और कहा, 'आदेशों का समयसीमा के अंदर पालन नहीं किए जाने को गंभीरता से लिया जाएगा।'

बहरहाल, इतना तो तय है कि आदेश का पालन नहीं किए जाने पर रेग्युलेटर बीमा कंपनियों पर कार्रवाई जरूर करेगा, लेकिन बीमाधारकों को भी नियमों एवं अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए ताकि कंपनियां बीमा लोकपाल के आदेश को लागू करने में फर्जीवाड़ा नहीं कर सके।

इंश्योरेंस ऑम्बड्समैन ऑफिस ज्यादा-से-ज्यादा 30 लाख रुपये का मुआवजा दिलवा सकता है जिसमें मुकदमा लड़ने का खर्च भी शामिल है। बीमा लोकपाल को पॉलिसीहोल्डर से शिकायत के दस्तावेज के साथ-साथ अन्य जरूरी कागजात मिलने के तीन महीनों के अंदर आदेश जारी करना होता है। आदेश की एक कॉपी शिकायतकर्ता और एक कॉपी इंश्योरेंस कंपनी को जाती है। आदेश मिलने के 30 दिनों के अंदर बीमा कंपनी इसे 30 दिनों के अंदर लागू करने को बाध्य होती है। उसे आदेश लागू करने की सूचना लोकपाल को भी देनी होती है।

2017 का नया नियम कहता है, 'शिकायतकर्ता को उस दिन से प्रति वर्ष के आधार पर ब्याज पाने का अधिकारी होगा जब नियमों के मुताबिक उसका क्लेम सेटलमेंट हो जाना चाहिए था। कंपनी को उसी दिन से ऑम्बड्समैन के आदेश के मुताबिक जिस तिथि को पेमेंट करना है, उस दिन तक का ब्याज देना होगा।' अगर कंपनी आदेश के बाद समयसीमा के अंदर पेमेंट नहीं करती है तो कंपनी से ब्याज के साथ अलग से मुआवजा जरूर लें। प्रोटेक्शन ऑफ पॉलिसीहोल्डर्स रेग्युलेशंस, 2017 के नियमों के मुताबिक, कंपनी को बैंक ब्याज दर से 2 प्रतिशत ज्यादा ब्याज दर देना होता है।

कैसे होता है शिकायतों का निपटारा

1. अगर कुछ शिकायत हो तो सबसे पहले अपनी बीमा कंपनी के शिकायत निपटान अधिकारी (ग्रिवांस रिड्रेसल ऑफिसर) से संपर्क करना चाहिए। उनका संपर्क माध्यम कंपनी की वेबसाइट से पता कर सकते हैं।

2. अगर कंपनी के शिकायत निपटान अधिकारी कोई जवाब नहीं दें या उनके जवाब से आप संतुष्ट नहीं हों तो IRDAI के पोर्टल igms.irda.gov.in पर शिकायत दर्ज कराएं।

3. आप चाहें तो सीधे अपने क्षेत्राधिकार के बीमा लोकपाल (इंश्योरेंस ऑम्बड्समैन) से शिकायत कर सकते हैं।

4. अगर आप बीमा लोकपाल के फैसले से भी संतुष्ट नहीं हैं तो उपभोक्ता अदालत (कन्ज्यूमर कोर्ट) का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

ध्यान दीजिए, अगर बीमा लोकपाल के फैसले से आपकी बीमा कंपनी असंतुष्ट है तो भी उसके पास फैसले को लागू करने के सिवा चारा नहीं है, लेकिन आप फैसले के खिलाफ उपभोक्ता अदालत जा सकते हैं।

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