10 October 2019 | 1.16 PM
पश्चिमी देशों में मक्खन या दूध के साथ मैश किए हुए उबले आलू रोजमर्रा के खानपान का हिस्सा हैं। नोरा एफ्रॉन ने 1986 के अपने बहुचर्चित उपन्यास हार्टबर्न में लिखा है, ‘‘जब आप डिप्रेशन में हों तो अच्छी तरह मैश किए हुए उबले आलुओं के भरपूर सेवन से बेहतर कुछ नहीं। निश्चित ही आप आलू की यह डिश बनाने के लिए किसी की मदद ले सकते हैं, लेकिन अवसाद (डिप्रेशन) की इस घड़ी में आपकी सेवा में यह सब करने के लिए कोई वहां मौजूद नहीं है।’’
दरअसल, एफ्रॉन खाने और हमारी इमोशंस या भावनात्मक स्थिति के बीच संबंध के बारे में बात कर रही थीं। जैसे, ब्रेकअप के बाद किसी को कैलोरियों से भरपूर कुछ खाने की इच्छा होती है।
शायद हम सब इस दौर से गुजर चुके हैं। मसलन, प्यार गंवाने के दर्द को बिसराने के लिए चॉकलेट का एक पूरा बार। या किसी कठिन परीक्षा की तैयारी से पहले बिस्कुट का पूरा एक डिब्बा चट कर जाना। अगर काबू नहीं पाया गया तो हर बार तनाव में खूब खाना (स्ट्रेस इटिंग) आदत बन जाता है।
भावनाओं और भोजन के बीच संबंध पर विज्ञान आधारित एक नजर:
हार्मोन के लिहाज से संबंध
तनाव में खाने की आदत वाले व्यक्ति को सांत्वना उतनी राहत नहीं दे सकती, जितना कि आइसक्रीम का एक टब या एक कप हॉट चॉकलेट। हां, भावनाओं के सैलाब में बहने पर ज्यादा खाने की इच्छा एक वास्तविकता है। और हम जब कभी भी अवसादग्रस्त, निराश या हताश होते हैं तो यही करते हैं।
जब हम तनाव में होते हैं तो हमारा शरीर कुछ ऐसे हार्मोन्स स्रावित करता (निकालता) है जो हमारे व्यवहार और आहार की प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं। जब हम थोड़ी देर के लिए तनावग्रस्त हों- जैसे किसी सार्वजनिक भाषण से पहले- एड्रेनल ग्रंथियों द्वारा एंड्रेनेलिन छोड़ा जाता है जो हमारी भूख को कुछ वक्त के लिए मार देता है। लेकिन अगर तनाव ज्यादा लंबी अवधि का हो- जैसे जब किसी की परीक्षा कुछ हफ्तों तक चलनी हो- यही एड्रेनल ग्रंथियां कोर्टिसोल (जिसे स्ट्रेस हार्मोन के नाम से भी जाना जाता है) छोड़ती हैं जिससे भूख बढ़ती है और कुछ न कुछ खाने की इच्छा होती है।
एड्रेनल ग्रंथियां हमारी किडनी के ठीक ऊपर होती हैं और यह नियमित तौर पर तनाव और बेहद मुश्किल परिस्थितियों में शरीर की ऊर्जा का संचालन करती हैं। चिकित्सकों के मुताबिक हार्मोन ग्रेलिन-जिसे हंगर हार्मोन के नाम से भी जाना जाता है-की भी स्ट्रेस इटिंग में भूमिका हो सकती है। हमारी आंत (आमाशय और छोटी आंत) ग्रेलिन स्रावित कर के दिमाग को संदेश देती है कि भूख लगी है और कुछ खाना चाहिए।
...और चीनी
आप कभी नहीं देखेंगे कि तनावग्रस्त व्यक्ति दो की बजाय चार चपाती या एक कटोरी चावल की बजाय दो कटोरी चावल खा रहा हो। अनुसंधान बताते हैं कि शारीरिक और भावनात्मक तनाव हमें ज्यादा शकर और ज्यादा वसा वाले खाद्य पदार्थ खाने के लिए उकसाते हैं। (वैसे यह अनुसंधान अभी तक केवल पशुओं पर लैबोरेटरी के माहौल में ही किया गया है) इसके पीछे का कारण अभी भी अस्पष्ट हैं।
अनुसंधानकर्ताओं का निष्कर्ष है कि जब हमारा पेट भर जाता है और हम संतुष्ट हो जाते हैं, वसा या शर्करायुक्त आहार शायद एक संदेश भेजते हैं-जिससे तनाव और भावनात्मक दबाव कुछ कम हो जाता है। इसीलिए इस तरह की खाद्य सामग्री को ‘कम्फर्ट फूड्स’ भी कहा जाता है।
स्ट्रेस इटिंग करने वाले लोग अधिकांशतया मोटे हो जाते हैं। वैसे भावनात्मक खानपान (इमोशनल इटिंग) कमर के ईर्द-गिर्द चर्बी की इकलौती वजह नहीं है। तनावग्रस्त लोग कम नींद, एक्सरसाइज की कमी और अल्कोहल सेवन में इजाफे की समस्या से भी गुजरते हैं, जिसका भी वजन बढ़ने में योगदान होता है।
क्या किया जाए
निश्चित तौर पर स्ट्रेस इटिंग एक अच्छा भावनात्मक व्यवहार नहीं है। इमोशनल इटिंग स्थायी हल नहीं है। इसलिए तनाव कम करने के लिए वसा और शर्करा से भरपूर वस्तुओं को खाने की बजाय हम कुछ बेहतर विकल्पों में से किसी को चुन सकते हैं, जैसे-
ध्यान: यह हमारे दिल, दिमाग को एक कर देता है, जिससे तनाव कम हो जाता है। यह हमें खान-पान के बेहतर विकल्प चुनने में मदद करता है।
एक्सरसाइज: ताई ची और योगा जैसी एक्सरसाइज तनाव से लड़ने में मददगार होती हैं। हालांकि कोर्टिसोल का स्तर एक्सरसाइज की तीव्रता और अवधि से बदलते रहता है।
भावनात्मक सहारा: इंसान का इंसान से संवाद मददगार होता है। अगर आप किसी को ‘स्ट्रेस इटिंग’ करता देखें तो उससे प्यार के साथ संवाद साधें। उसे सहारा दें (केवल आलोचना से कभी किसी का भला नहीं हुआ है) ताकि उसे बेहतर लगे। अगर आप खुद इस स्थिति का शिकार हो जाएं तो अपने प्रिय परिजनों या जरूरत पड़े तो डॉक्टर के साथ संपर्क करें। वह आपको तनाव मुक्त होने में मदद कर सकते हैं।