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आज़ाद भारत को को नेहरू का तोहफा थी ये शिक्षण संस्था अमेरिका आज भी मानता है लोहा, दुनिया तरसती है एडमिशन को

बीते एक दशक में भारत ने दुनिया को हर क्षेत्र में शानदार प्रतिभाएं दी हैं। आईटी क्षेत्र हो या प्रबंधन अथवा विज्ञान, भारतीय बौद्धिक संपदा और मानव संसाधन ने पूरी दुनिया के आला दर्जे के दिमागों को चुनौती दी है। दरअसल, भारत के पास एक ऐसा शिक्षा संस्थान है, जिसे चीन ही नहीं बल्कि अमेरिका भी सलाम ठोंकता है। इसी संस्थान की मेधा ने बनाया है, भारत के मानव संसाधन को दुनिया का सिरमौर।
यह ऐसे शिक्षण संस्थान हैं, जिनमें शिक्षा हासिल करने के लिए दाखिला मिलना राष्ट्रीय गौरव का विषय माना जाता है। केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के छात्र इन संस्थानों में पढ़ने के लिए तरसते हैं।
इसे भारत में राष्ट्रीय महत्व का दर्जा हासिल है। इनकी प्रतिष्ठा इतनी है कि इसमें दाखिला लेने के लिए सभी को कड़ी मेहनत से गुजरना होता है। भारत में इन संस्थानों की कुल संख्या तकरीबन 16 है। यह देश के कुछ बेहद चुनिंदा शहरों में स्थापित हैं। इनकी स्थापना का उद्देश्य वैश्विक स्तर के दिमागों का निर्माण करना है।
भारत में इन संस्थानों को भारतीय प्रौद्योगिक संस्था‍न कहा जाता है। इसे IIT भी कहते हैं। इनकी स्थापना का इतिहास 1946 से शुरू होता है, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ऐसे संस्थानों को स्थापित करने के लिए बाकायदा एक समिति का गठन किया।
नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति ने भारत भर में ऐसे संस्थानों के गठन की सिफ़ारिश की। इन सिफ़ारिशों को ध्यान में रखते हुए पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना कलकत्ता के पास स्थित खड़गपुर में 1950 में हुई।
हालांकि शुरुआत में यह संस्थान हिजली कारावास में स्थित था। 15 सितंबर 1956 को भारत की संसद नें "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम" को मंज़ूरी देते हुए आईआईटी को "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" घोषित किया।
इसी अधिनियम के आधार पर बंबई (1958 ), मद्रास (1959) और कानपुर (1959), तथा नई दिल्ली (1961) में हुई। असम में छात्र आंदोलन के चलते तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम में भी एक आईआईटी की स्थापना का वादा किया था, जिसके बाद 1994 में गुवाहाटी में आईआईटी की स्थापना हुई। खास बात यह है कि साल 2001 में रुड़की स्थित रुड़की विश्वविद्यालय को भी आईआईटी का दर्जा दिया गया।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आईआईटी जैसे संस्थान का डंका पूरी दुनिया में बजता है। यहां तक कि अमेरिकी और ब्रिटिश कंपनियां तो यहां के निकले छात्रों की दीवानी है।
इन संस्थानों के श्रेष्ठ बौद्धिक शिक्षण स्तर के चलते पूरे देश और यहां तक कि पूरे एशिया में छात्रों के बीच एडमिशन के लिए होड़ मची रहती है। इन संस्थानों में स्नातक स्तर की पढ़ाई में प्रवेश एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) के आधार पर होता है। यह परीक्षा बहुत कठिन मानी जाती है और इसकी तैयारी कराने के लिये देश भर में हजारों 'कोचिंग क्लासेस्' चलाए जा रहे हैं।
हालांकि आईआईटी संस्थानों की आलोचना की जाती रही है। माना जाता है कि भारत की गरीब जनता के पैसे से इसमें पढ़कर निकलने वाले पैसा कमाने के लालच में देश छोड़कर अमेरिका सहित दूसरे देशों में चले जाते हैं, जिससे यहां की बौद्धिक संपदा का लाभ भारत को ही नहीं मिल पाया है।

 

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