• fulldetail

निवेश का हर मकसद पूरा होगा अब म्यूचुअल फंड से:

29 August. 2018 | 12.52 PM

नई दिल्ली: आप अगले 6-7 साल में मकान खरीदना चाहते हैं? या 22 साल बाद के लिए रिटायरमेंट सेविंग्स शुरू करना चाहते हैं? या अगले दो साल में छुट्टियों पर जाना चाहते हैं? लोगों के पास जब भी पैसा होता है, इधर उधर बेतरतीब तरीके से निवेश कर देते हैं। ज्यादातर इसकी परवाह नहीं करते कि उन्हें कितने भी समय के लिए किस विकल्प में निवेश करने की जरूरत है। उन्हें पक्का पता नहीं होता कि क्या समय पर उनके पास जरूरत जितनी रकम होगी।


इसलिए सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि निवेश की पक्की योजना बनाएं। सबसे पहले वेरी शॉर्ट, शॉर्ट, मीडियम और लॉन्ग टर्म सहित सभी गोल तय करें। उसके बाद गोल की फ्यूचर वैल्यू और उस पीरियड का अंदाजा लगाएं, जब आपको पैसों की जरूरत होगी। अंत में जरूरत की रकम और टाइम पीरियड के हिसाब से सही इन्वेस्टमेंट टूल का चुनाव करें। आपकी ऐसी सभी जरूरतें म्यूचुअल फंड स्कीमें पूरी कर सकती हैं।


इनमें बहुत सी वेराइटी है:

इक्विटी, हाइब्रिड (इक्विटी डेट मिक्स) या डेट फंड। मिसाल के लिए अगर 15 साल में आपको एक करोड़ की जरूरत है तो अधिकांश पैसा इक्विटी और सात साल के लिए लगभग 10 लाख डेट में लगाएं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि गोल के हिसाब से किस तरह का फंड चुना जाए।


टाइम पीरियड: वेरी शॉर्ट टर्म (3 महीने से 1 साल), गोल: इमर्जेंसी फंड, म्यूचुअल फंड कैटिगरी: लिक्विड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड


इमर्जेंसी फंड बनाने जैसे मकसद के लिए इनवस्टमेंट ऐसा होना चाहिए कि उसे फटाफट भुनाया जा सके। लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड डेट कैटिगरी में आते हैं और हाई क्वॉलिटी इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाते हैं। इनमें कैपिटल सेफ्टी के साथ ही बैंक सेविंग्स एकाउंट से ऊंचा रिटर्न मिलता है। इनको आसानी से रिडीम कराया जा सकता है और इन पर डेट फंड के हिसाब से टैक्स लगता है। शॉर्ट टर्म गेंस इनकम में ऐड किया जाता है और उसी हिसाब से टैक्स लगता है।


टाइम पीरियड: शॉर्ट टर्म (2-3 साल), गोल: वेकेशन पर जाना, कार खरीदना म्यूचुअल फंड कैटिगरी: डेट फंड, आर्बिट्राज फंड


दो तीन साल के शॉर्ट गोल्स के लिए डेट या आर्बिट्राज फंड अच्छा ऑप्शन हो सकते हैं। टाइम फ्रेम छोटा होता है इसलिए डेट या ट्रेजरी बिल, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, कॉरपोरेट बॉन्ड्स, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स जैसी फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज मिक्स और दूसरी अलग अलग मैच्योरिटी की सिक्योरिटीज के जरिए डेट फंड कैपिटल सेफ्टी मुहैया कराते हैं।


आर्बिट्राम फंड्स भी अच्छा ऑप्शन होते हैं क्योंकि उनका रिस्क प्रोफाइल डेट फंड जैसा होता है लेकिन वे टैक्सेशन के लिहाज से इक्विटी फंड्स माने जाते हैं। इसलिए एक साल से कम के शॉर्ट टर्म गेंस पर 15% टैक्स लगता है जबकि एक लाख से ऊपर के लॉन्ग टर्म गेंस पर 10% लगता है। फंड मैनेजर कैश मार्केट में शेयर खरीद कर फ्यूचर्स या डेरिवेटिव्स मार्केट में सेल करता है। कॉस्ट प्राइस से जितने ज्यादा में सेल होती है वह प्रॉफिट होता है। इक्विटी मार्केट पोजिशंस के अलावा कुछ एसेट्स फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में भी लगाए जाते हैं।


टाइम पीरियड: मीडियम टर्म (4-8 साल), गोल: मकान खरीदना, बिजनेस शुरू करना; म्यूचुअल फंड कैटिगरी: बैलेंस्ड या हाइब्रिड फंड


बैलेंस्ड या हाइब्रिड फंड्स आमतौर पर 60:40 के अनुपात में इक्विटी और डेट में पैसा लगाते हैं। इसलिए टाइम पीरियड और जरूरत के हिसाब से 60% इक्विटी और बाकी डेट या इसका उलटा लगा सकते हैं।


टाइम पीरियड: लॉन्ग टर्म (8 साल से ज्यादा), गोल: बच्चों की पढ़ाई, रिटायरमेंट; म्यूचुअल फंड कैटिगरी: इक्विटी या इक्विटी ओरिएंटेड फंड, ELSS


8-10 साल से ज्यादा के लॉन्ग टर्म गोल के लिए इक्विटी में लगभग 80% लगाने वाले इक्विटी फंड्स सा डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स बेहतर रहते हैं। ऐसा इसलिए इनमें 12% से ज्यादा का रिटर्न मिल सकता है और 10 साल बाद रिस्क एक तरह से नगण्य हो जाता है। ऊंचा रिटर्न देनेवाले लार्ज, मिड या स्मॉल फंड्स भी चुने जा सकते हैं। ELSS भी एक तरह का डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड है, इसमें टैक्स सेविंग बेनेफिट होता है। इसमें सेक्शन 80सी का एग्जेम्पशन मिलता है तीन साल का लॉक इन होता है।

Comment Here