14 November 2019 | 2.37 PM
पंजाब के राज्य उपभोक्ता आयोग ने घर खरीदारों के पक्ष में एक अहम फैसला सुनाया है. उसने कहा है कि अगर बिल्डर समय पर फ्लैट का पजेशन देने में नाकाम रहता है, तो ग्राहक को बाद में किसी भी स्थिति में इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. यानी यह पूरी तरह से ग्राहक पर निर्भर करेगा कि वह पजेशन ले या नहीं ले. इतना ही नहीं, ग्राहक को उचित ब्याज के साथ पूरी रकम का रिफंड लेने का भी हक है. आयोग ने चंडीगढ़ के एक दंपति की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. आयोग का फैसला एटीएस एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ नितिका वर्मा और नितिन वर्मा के मामले में आया है. पति-पत्नी ने 6 सितंबर, 2014 को डेराबस्सी में स्थित 'एटीएस गोल्फ मीडोज लाइफस्टाइल' नाम के प्रोजेक्ट में एक अपार्टमेंट बुक किया था. इसकी कुल कीमत 61 लाख रुपये थी. बायर एग्रीमेंट के अनुसार, बिल्डर को बुकिंग के तीन साल के भीतर अपार्टमेंट का पजेशन देना था. इसमें छह महीने का ग्रेस पीरियड था.
शिकायतकर्ता कुल बिक्री मूल्य में पहले ही 53.70 लाख रुपये का भुगतान कर चुके थे. बाकी की रकम का भुगतान पजेशन के समय किया जाना था. हालांकि, बिल्डर वादा किए गए समय के भीतर पजेशन देने में विफल रहा. वह केवल बायर एग्रीमेंट पर प्रति माह 5 रुपये प्रति वर्ग फीट का मुआवजा दे रहा था. पति-पत्नी ने 5 फरवरी, 2019 को आयोग का दरवाजा खटखटाया था. अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने इसमें बिल्डर की शिकायत की.
इसके जवाब में बिल्डर ने इस आधार पर शिकायत को खारिज करने के लिए याचिका दाखिल की कि रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (रेरा), 2016 के लागू होने के बाद आयोग इस पर सुनवाई नहीं कर सकता है. यह उसके क्षेत्राधिकार से बाहर है.
आयोग ने बिल्डर की दलील खारिज कर शिकायत को स्वीकार किया. एक संयुक्त आदेश के माध्यम से कहा कि बिल्डर को पहले से किए गए भुगतान को वापस करने की आवश्यकता है. यानी 53.70 लाख रुपये के साथ सालाना 12 फीसदी की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा. इसके अलावा मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी के खर्च के लिए भी 65,000 रुपये का मुआवजा देना होगा.